साहिलों पे दुश्मनों ने लगाई थी ऐसी आग; हम बदहवास डूबती कश्ती में आ गए!
उनकी गली को छोड़कर ये फ़ायदा हुआ; गालिब, फिराक, जोश की बस्ती में आ गए!!
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नाभिषेको न संस्कारः सिंघस्य क्रियते मृगेः | विक्रमार्जीत सत्वस्य स्वमेव मृगेन्द्रता ||
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